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*निर्जला एकादशी कब और क्यों मनाई जाती है?

निर्जला एकादशी, जिसे 'देवव्रत' भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह व्रत 18 जून, मंगलवार को पड़ेगा। यह व्रत विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे साल के सभी 24 एकादशियों के समान पुण्य फल प्राप्त करने वाला व्रत माना जाता है। इस दिन भक्तगण भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते, जो इस व्रत को और भी कठिन बना देता है।

*निर्जला एकादशी का महत्व और इसके पीछे का कारण

निर्जला एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सालभर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। यह एकादशी विशेष रूप से भीषण गर्मी के महीनों में आती है, इसलिए इस दिन जल का सेवन करना भी वर्जित है। इसका उद्देश्य कठोर तपस्या और आत्मसंयम को दर्शाना है, जिससे मनुष्य अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति को जागृत कर सके।

*भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं?

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इसके पीछे पौराणिक कथा है कि पांडवों में दूसरे भाई भीमसेन को भोजन और जल का बहुत शौक था, जिसके कारण वे एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। जब उन्होंने इस विषय में महर्षि व्यास से परामर्श लिया, तो महर्षि ने उन्हें सालभर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त करने के लिए निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। इस व्रत को करते समय उन्हें दिनभर बिना भोजन और जल के रहना पड़ा, जो कि उनके लिए बहुत कठिन था। तभी से यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

*निर्जला एकादशी व्रत: तिथि और पारण का समय

- निर्जला एकादशी: मंगलवार, 18 जून 2024

- ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 जून 2024 को सुबह 04:43 बजे

- एकादशी तिथि समापन: 18 जून 2024 को सुबह 06:24 बजे

- व्रत पारण का समय: 19 जून 2024 को सुबह 05:35 बजे से 07:28 बजे तक

- द्वादशी समाप्ति: 19 जून 2024 को सुबह 07:28 बजे

*पारण का नियम और विधि

पारण व्रत का समापन करने की प्रक्रिया होती है, जो एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद की जाती है। द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पारण करना आवश्यक होता है, अन्यथा इसे धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना जाता है। हरि वासर, यानी द्वादशी की पहली चौथाई अवधि में पारण नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, मध्याह्न के समय भी व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

*क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी?

निर्जला एकादशी को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और पुण्य फल प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जो व्यक्ति पूरे साल की सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर सकते, वे केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके ही संपूर्ण एकादशियों का फल प्राप्त कर सकते हैं। इस व्रत से आत्मसंयम, तपस्या और धार्मिकता का विकास होता है, जिससे मनुष्य अपने जीवन को अधिक सकारात्मक दिशा में ले जा सकता है।

*सारांश

निर्जला एकादशी एक अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे सालभर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं, जिसका कारण भीमसेन की पौराणिक कथा है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को पारण के नियमों का पालन करना चाहिए और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन विशेष आराधना करनी चाहिए। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें आत्मसंयम और तपस्या का भी संदेश देता है।

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