ज्योतिष शास्त्र में शनि की साढ़े साती का अर्थ होता है - व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्र के स्थान से 45 डिग्री की अंदर शनि का गोचर/भ्रमण करना।
ज्यादातर लोग शनि देव का नाम सुनते ही डरने लगते हैं और शनि की साडा-साती के भय के कांपते हैं, लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि शनि देव, न्याय के देवता हैं और अगर आप ने अच्छे कर्म किए होंगे तो उसका अच्छा फल ही वो आप को देंगे.
साथ में, यह भी समझना जरुरी है कि सभी की कुंडली में शनि कष्टकारी नहीं होता। जिनकी लग्न राशि, वृषभ या तुला हो उनके लिए तो शनि देव, योग-कारक होते हैं. यहाँ यह भी समझना ज़रूरी है कि व्यक्ति की लग्न राशि और चंद्र राशि अक्सर अलग होती हैं और साधारण जनता सिर्फ अपनी चंद्र राशि ही याद रखती है और उसी के आधार पर राशि फल देखती है, जो कि सही नहीं है.
जिनकी लग्न राशि मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ हो, उनके लिए भी शनि देव, अधिकतर शुभ फल ही देते हैं.
चंद्र राशि के अनुसार साढ़े साती में शनि देव भले ही १२वे, पहले या दूसरे स्थान में गोचर कर रहे हो लेकिन अगर लग्न राशि से 9 वे, 10 वे, 11 वे स्थान में हो और अगर आप की लग्न राशि के अनुसार शनि देव, शुभ फल दायी हैं, तो वह समय अच्छे फल भी देता है.
वैसे भी सिर्फ एक ग्रह के गोचर के आधार पर भविष्य का सम्पूर्ण व सही फलकथन करना सही नहीं है. इसलिए, शनि की साढ़े साती से डरने के बजाए अपनी कुंडली का किसी अनुभवी पंडित से विस्तृत और प्रामाणिक विश्लेषण करवाना चाहिए और जरुरी हो तो उपयुक्त उपाय करने चाहिए।
किस जातक को शनि देव का कौन-सा उपाय करना लाभदायी होगा वह भी उसकी जन्म कुंडली देख कर बताना ही उचित रहता है.
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